उपात्त
उपात्त इन्द्रियाँ व मन तथा अनुपात्त प्रकाश उपदेशादि पर है पर की अपेक्षा से होने वाला ज्ञान परोक्ष है। आत्मा के रागादि परिणामों से कर्म और रूप में जिन पुद्गल द्रव्यों का ग्रहण किया जाता है। वे उपात्त पुद्गल द्रव्य तथा आदि अनुपात्त पुद्गल सभी दृष्टि से नित्य होकर भी पर्याय दृष्टि से प्रतिक्षण पर्याय परिवर्तन होने से अनित्य है।