उपनय
1. दृष्टान्त की अपेक्षा लेकर पक्ष में हेतु के दोहराने को उपनय कहते हैं जैसे- इसीलिए यह पर्वत भी धूमवाला है- ऐसा कहना अथवा साधनवान रूप से पक्ष की दृष्टान्त के साथ साम्यता का कथन करना जैसे- इसीलिए यह धूम वाला है। 2. जो नयों के समीप हो अर्थात् नय की भाँति ही ज्ञाता के अभिप्राय स्वरूप हों उन्हें उपनय कहते हैं। वह उपनय सद्भूत, असद्भूत और उपचरित असद्भूत के भेद से तीन-तीन प्रकार का है, उपनय भी व्यवहारनय है ।