उद्वेलन
यह संक्रमण का एक भेद है। अधः प्रवृत्त आदि तीन करण रूप परिणामों के बिना ही कर्मों का अन्य प्रकृति रूप परिणमन होना उद्वेलन संक्रमण कहलाता है। जैसे- रस्सी के बटने में जो बल लगाया जाता था बाद में उल्टा घुमाने से वह बल निकाल दिया। इसी प्रकार जिस कर्म का बंध किया था बाद में परिणाम विशेष के द्वारा अपकृष्ट करके उसको अन्य प्रकृति रूप परिणमा कर नष्ट कर देना अर्थात् उसका फल उदय में नहीं आने देना यह उद्वेलन कहलाता है। यह आहारक शरीर, आहारक शरीरांगोपांग सम्यक्त्व प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक शरीरांगोपांग, मनुष्यगति मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्र मात्र इन तेरह कर्म प्रकृतियों की उद्वेलना होती है उद्वेलना होने पर इनका सत्व नहीं रहता।