आहारचर्या ( भिक्षाचर्या )
सूर्य के उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी (72 मिनिट) छोड़कर मध्यकाल में एक, दो या तीन मुहूर्त (48 मि.) काल में एक बार अन्न-जल ग्रहण करना यह साधु की आहारचर्या है। सद्गृहस्थ के द्वारा निर्दोष विधि से भक्तिपूर्वक दिये गए आहार को मुनिजन अपने हाथ रूपी पात्र ( बर्तन) में रखकर खाते हैं, मुनिजन खड़े होकर मौनपूर्वक आहार ग्रहण करते हैं, खड़े होकर आहार ग्रहण करने का उद्देश्य है कि जब तक खड़े होकर हाथ की अंजुली में आहार करने की सामर्थ्य रहेगी तभी तक आहार ग्रहण करूँगा अन्यथा नहीं। इस प्रतिज्ञा के निर्वाह और इन्द्रिय व प्राणी संयम के लिए मुनियों को खड़े होकर आहार का विधान किया है ।