आहारक समुद्घात
सूक्ष्म पदार्थ के विषय में जिनको कुछ जिज्ञासा उत्पन्न हुई है उन परम ऋषि के मस्तक में से मूल शरीर को न छोड़ते हुए जो एक हाथ ऊँचा, हंस के समान धवल, सर्वांग संदर पुरुषाकार शरीर निकलकर अन्तर्मुहूर्त में जहाँ कहीं भी केवली को देखता है उन केवली के दर्शन से ऋषि की जिज्ञासा का समाधान कराकर फिर अपने स्थान में लौट आता है, इसे आहारक समुद्घात कहते हैं। यह समुद्घात मात्र प्रमत्तसंयत मुनि के ही होता है। लेकिन मुनियों में भी परिहार विशुद्धि संयत के नहीं होता और उपशम सम्यक्त के साथ भी नहीं होता।