आहवनीय अग्नि
गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्नि नाम से प्रसिद्ध इस तीन महा अग्नियों को तीन कुन्डों में स्थापित करना चाहिए। इन तीनों प्रकार की अग्न्दियों में मन्त्रों के द्वारा पूजा करने वाला पुरुष द्विजोत्म कहलाता है। नित्य पूजन करते समय इन तीनों प्रकार की अग्नियों के विनियोग नैवेद्य पकाने में, धूप खेने में और दीपक जलाने में होता है। गार्हपत्य अग्नि से नैवेद्य पकाया जाता है, आहवनीय अग्नि में धूप खेई जाती है और दक्षिणाग्नि से दीप जलाया जाता है। घर में बड़े प्रयत्न से इन तीनों अग्नियों की रक्षा करनी चाहिए। जिनका कोई संस्कार नहीं हुआ है ऐसे लोगों को कभी नहीं देनी चाहिए।