आस्रव
आस्रव : जीव के द्वारा प्रतिक्षण मन से, वचन से या काय से जो कुछ भी शुभ या अशुभ प्रवृत्ति होती है उसे जीव का भावास्रव कहते हैं। उसके निमित्त से कोई विशेष प्रकार की जड़-पुद्गल वर्गणाएँ आकर्षित होकर उसके प्रदेशों में प्रवेश करती हैं सो द्रव्यास्रव है। सर्व साधारण जनों को तो कषाय वश होनेके कारण यह आस्रव आगामी बंध का कारण पड़ता है, इसलिए सांपरायिक कहलाता है, परंतु वीतरागी जनों को वह इच्छा से निरपेक्ष कर्मवश होती है इसलिए आगामी बंध का कारण नहीं होता। और आने के अनंतर क्षण में ही झड़ जाने से ईर्यापथ नाम पाता है।
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