आसन
जंघा का दूसरी जंघा के मध्य भाग से मिल जाने पर पद्मासन हुआ करता है। इस आसन में बहुत सुख होता है और समस्त लोग बड़ी सुगमता से धारण करते हैं। दोनों जंघाओं को आपस में मिलाकर ऊपर-नीचे रखने से पर्यंकासन कहते हैं। पैरों को दोनों जंघाओं के ऊपर-नीचे रखने से वीरासन होता है। कातर पुरुष इसे देर तक नहीं कर सकते, धीर-वीर ही कर सकते हैं। दोनों पाँव के टखने ऊपर की ओर करके अर्थात् दोनों पाँवों को जंघाओं पर रखकर उनके ऊपर दोनों हाथों को ऊपर-नीचे रखें, हाथ के दोनों अंगूठे दोनों टखनों के ऊपर आ जायें, पेट व छाती की रोमावली व नसिका एक ही सीध में रहें, दोनों नेत्रों की दृष्टि भी नसिका पर पड़ती रहे, इस प्रकार सबको समान सीध में करके सीधे बैठें न अधिक अकड़ कर न झुक कर, इसको सुखासन कहते हैं। पर्यंकासन, वज्रासन, वीरासन, सुखासन, कमलासन, कायोत्सर्ग ये ध्यान के योग्य आसन माने गये हैं।