आवर्त
मन, वचन, काय के परिवर्तन को आवर्त कहते हैं। ये आवर्त बारह होते हैं। जो सामायिक तथा स्तवन के प्रारंभ और अन्त में किये जाते हैं जैसे ‘णमो अरिहंताणं’ इत्यादि सामायिक दण्डक के पहले क्रिया करने रूप मनोविकल्प होता है, उस मनोविकल्प को छोड़कर सामायिक दण्डक के उच्चारण के प्रति मन को लगाना यह मन परावर्तन है। उसी सामायिक दण्डक के पहले भूमिस्पर्श रूप नमस्कार किया जाता है, उस समय वन्दना मुद्रा की जाती है उस वन्दना मुद्रा को छोड़कर पुनः खड़े होकर दोनों हाथों को जोड़कर तीन बार घुमाना ‘काय परावर्तन’ है। ‘चैत्यभक्ति कायोत्सर्ग करोमि’ इत्यादि उच्चारण को छोड़कर- णमो अरिहंताण इत्यादि पाठ का उच्चारण करना यह वाक् परावर्तन है, इस प्रकार सामायिक के पहले और अन्त में चारों दिशाओं में मन, वचन और काय परावर्तन रूप तीन-तीन आवर्त होते हैं एवं सब मिलकर प्रारंभ व अंत में बारह – बारह आवर्त होते हैं।