आजीवक मत
(पूरणकश्य का मत) उसके मत से समस्त प्राणी बिना कारण अच्छे बुरे होते हैं। संसार में शक्ति सामर्थ्य आदि पदार्थ नहीं हैं। जीव अपने अदृश्य के प्रभाव से यहाँ-वहाँ संचार करते है, उन्हें जो सुख–दुःख भोगने पड़ते हैं, सब उनके अदृष्ट पर निर्भर है। 14 लाख प्रधान जन्म 500 प्रकार के असम्पूर्ण कर्म, 62 प्रकार के जीवन पथ 8 प्रकार की जन्म की तह, 4900 प्रकार के कर्म, 4900 भ्रमण करने वाले सन्यासी, 3000 नरक, 84 लाख काल इन कालों के भीतर पण्डित और मूरख इन सबके कष्टों का अन्त हो जाता है। ज्ञानी और पणि कर्म के हाथ से छुटकारा नहीं पा सकते । जन्म की गति से सुख और दुख का परिवर्तन होता है, उनमें हास और वृद्धि होती है।