आखेट
शिकार खेलना बाह्य अनर्थ क्रियाओं के समान है इसलिए उसका त्याग अनर्थदण्डत्याग नाम के गुणव्रत में अन्तरभूत हो जाता है। शिकार खेलने में अनेक प्राणियों की हिंसा करने के लिए ही परिणाम होते हैं तदनन्तर उसके कर्मों के अनुसार भोगना भोगोपभोग की प्राप्ति होती भी है और नहीं भी होती है। शिकार खेलने का अभ्यास करना तथा और भी ऐसी ही शिकार खेलने के साधन भूत क्रियाओं का करना शिकार खेलने में ही अन्तरभूत है ऐसे सर्व प्रयोगों का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि इसका त्याग न करने से असाता वेदनीय कर्म का बन्ध होता है जो भारी दुःखों का कारण है।