हेत्वाभास
अन्यथानुपपत्ति से रहित जो हेतु नहीं होते हुए भी हेतु रूप से ग्रहण किया जाता है वह हेत्वाभास है अथवा जो हेतु के लक्षण से रहित है और कुछ रूप में हेतु के समान प्रतीत होता है वह हेत्वाभास है। विरुद्ध असिद्ध, अनेकांतिक और अकिंचित्कर ये चारों ही अन्यथा नुपपत्ति रूप हेतु के लक्षण से रहित होने के कारण हेत्वाभास है । 1. जो प्रत्यक्ष आदि से बाधित हो उसे विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं अथवा जिस सिद्धान्त को स्वीकार करके प्रवृत्त हो उसी सिद्धान्त का जो विरोधी हो वह विरुद्ध हेत्वाभास है जैसे शब्द परिणामी नहीं है क्योंकि कृतक है यहाँ कृतकत्व हेतु की व्याप्ति अपरिणामित्व से विपरीत परिणामित्व के साथ है इसलिए कृतकत्व हेतु विरुद्ध हेत्वाभास है। 2. पक्ष में जिसका रहना अनिश्चित हो वह असिद्ध हेत्वाभास है जैसे शब्द अनित्य है क्योंकि चक्षु इन्द्रिय से जाना जाता है यहाँ चक्षु इन्द्रिय से जाना जाता है यह हेतु असिद्ध हेत्वाभास है क्योंकि यह हेतु पक्षभूत शब्द में नहीं है शब्द तो श्रोतेन्द्रिय से जाना जाता है। असिद्ध हेत्वाभास दो प्रकार का है स्वरूप असिद्ध ओर संदिग्ध असिद्ध । शब्द परिणामी है क्योंकि आँख से देखा जाता है यह स्वरूप असिद्ध हेत्वाभास है अनुमान के स्वरूप से सर्वथा अनभिज्ञ किसी मूर्ख मनुष्य के सामने कहना कि यहाँ अग्नि है क्योंकि धुआ है यह संदिग्ध असिद्ध हेत्वाभास है। 3. जो साध्य स्वयं सिद्ध हो अथवा प्रत्यक्ष आदि से बाधित हो उस साध्य की सिद्धि के लिए यदि हेतु का प्रयोग किया जाता है तो वह अकिंचित्कर हेत्वाभास कहा जाता है अथवा जो हेतु साध्य की सिद्धि करने में अप्रयोजक है उसे अकिंचित्कर कहते हैं यह दो प्रकार का है सिद्ध साधन और बाधित विषय | शब्द कान से सुना जाता है क्योंकि वह शब्द है यहाँ पर शब्द में श्रवणपना स्वयं सिद्ध है इसलिए शब्द सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त शब्द हेतु कुछ नहीं करता । अतः यह सिद्ध साधन हेत्वाभास है। बाधित विषय हेत्वाभास पाँच प्रकार का है प्रत्यक्ष अनुमान, आगम, लोक एवं स्ववचन | अग्नि ठण्डी है क्योंकि द्रव्य है जैसे जल । यह प्रत्यक्ष बाधित हेत्वाभास है। शब्द अपरिणामी है क्योंकि वह लिया जाता है। जैसे- घट यह अनुमान बाधित हेत्वाभास है धर्म परभव में दुख देने वाला है क्योंकि वह पुरुष के आधीन है जैसे अधर्म यह आगम बाधित हेत्वाभास है मनुष्य के मस्तक की खोपड़ी पवित्र है क्योंकि वह प्राणी का अंग है जिस प्रकार शंख सीप आदि । यह लोक बाधित हेत्वाभास है मेरी माँ बांझ है क्योंकि पुरुष के संयोग से उनके गर्भ नहीं रहता। यह स्ववचन बाधित है। 4. जो हेतु पक्ष, विपक्ष व सपक्ष तीनों से रहे उसे अनैकान्तिक (व्याभिचारी) हेत्वाभास कहते हैं। यह दो प्रकार का है- निश्चय विपक्षवृत्ति एवं शंकित विपक्ष वृत्ति। जैसे यह प्रदेश धूम्र वाला है क्योंकि वह अग्निवाला है यहाँ ‘अग्नि’ हेतु पक्षभूत संदिग्ध धूमवाले सामने के प्रदेश में रहता है और सपक्ष रसोई में रहता है तथा विपक्ष धूम्ररहित होने से निश्चित ही अंगार रूप अग्नि वाले प्रदेश में भी रहता है ऐसा निश्चय है अतः यह निश्चय विपक्ष वृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास है। गर्भस्थ मैत्री का पुत्र श्यामवर्ण होना चाहिए क्योंकि मैत्री का पुत्र है दूसरे मैत्री के पुत्रों की तरह । यहाँ ‘मैत्री का पुत्रपना हेतु गर्भस्थ मैत्री के पुत्र में रहता है सपक्ष दूसरे मैत्रीपुत्रों में रहता है और विपक्ष अर्थात् अश्याम (गोरे) पुत्र में भी शंका बनी रहने से शंकित विपक्ष वृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास है।