हनुमान
पूर्व भव सं. 6 मे दमयन्त पाँचवे स्वर्ग में देव, चौथे में सिंहचन्द्र नामक राजपूत और पूर्व भव लान्तव स्वर्ग में देव और वर्तमान भव में पवनंजय का पुत्र था क्योंकि विमान में से पाषाण शिला में गिरने पर इसने पत्थर को चूर्ण-चूर्ण दिया इसलिए इनका नाम श्री शैल भी था । रामायण युद्ध में राम की बहुत सहायता की अन्त में मेरु की वन्दना को जाते समय उल्कापात से विरक्त होकर दीक्षा ली तथा अन्त में मोक्ष प्राप्त किया ।