स्वरूपासिद्ध
स्वरूपासिद्ध इस प्रकार है। नील और नीलवान् ये अभेद हैं। सहोपलम्भ नियम होने से यहाँ यदि युगपत् प्राप्ति को हेतु माना जाए तो वह असिद्ध ही है विषय दर्शन होने पर भी सन्तानान्तरगत उस ज्ञान की कही प्राप्ति होने पर भी उस विषय विशेष की जानकारी नहीं होती। शब्द परिणामी है क्योंकि यह आँख से देखा जाता है यह अविद्यमानसत्ता अर्थात् स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है।