स्वच्छंद साधु
मोक्ष नगर के समीप कितनेक मुनि इन्द्रिय और कषाय रूपी चोरों से जिनका चारित्र रूपी भांडबल लूटा गया है तथा संयम का अभिमान जिनका नष्ट हुआ है ऐसे होकर मिथ्यात्व को प्राप्त होते हैं वे शील दरिद्री मुनि हमेशा तीव्र दुःख को प्राप्त होते हैं। जो मुनि साधु सार्थ को छोड़कर स्वतन्त्र हुआ है जो स्वेच्छाचारी बनकर आगम विरुद्ध और पूर्वाचार्य अकथित आचारों की कल्पना करता है। और अकथित आचारों की कल्पना करता है व स्वच्छन्द नामक भ्रष्ट मुनि समझना चाहिए और जिनेन्द्र देव के वचनों को दूषित करने वाले हैं उनको मृगचारित्र अथवा स्वच्छन्द कहते हैं।