स्थलगता चूलिका
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जिसमें पृथिवी के भीतर गमन करने के कारणभूत मंत्र – तंत्र और तपश्चरण का और वास्तुविद्या तथा भूमि संबंधी अनय शुभाशुभ के कारणों का वर्णन किया है उसे स्थलगता-चूलिका कहते हैं।
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