स्त्री
जो दोषों से स्वयं अपने को और दूसरों को आच्छादित करती है उसे स्त्री कहते हैं अथवा जो पुरुष की आकांक्षा करती है उसे स्त्री कहते हैं । स्त्रीवेद के उदय से जिसमें गर्भ धारण करने की क्षमता होती है वह द्रव्य स्त्री है तथा स्त्रीवेद के उदय से पुरुष की अभिलाषा रूप भाव को धारण करने वाला जीव भावस्त्री कहलाता है। जो संसार परिभ्रमण से विरक्त है शास्त्रों के पारगामी है स्त्रियों से सर्वथा निस्पृह हैं तथा उपशम भाव ही है धन जिनका ऐसे मुनिगणों ने यद्यपि स्त्रियों की निन्दा की है तथापि जो स्त्रियाँ निर्मल हैं और पवित्र यम, नियम, स्वाध्याय, चारित्र आदि से विभूषित हैं तथा वैराग्य – उपशम आदि पवित्र आचरणों से उज्जवल हैं वे निन्दा करने योग्य नहीं हैं क्योंकि निन्दा दोषों की की जाती है किन्तु गुणों की निन्दा नहीं की जाती।