सूत्र
1. सूत्र शब्द ग्रन्थ, तन्तु और व्यवस्था इन तीन अर्थों को सूचित करता है। श्रुत ही सूत्र है और वह सूत्र भगवान अर्हन्त सर्वज्ञ के द्वारा स्वयं जानकर उपदिष्ट, स्यात्कार चिंह युक्त पौद्गलिक शब्द ब्रह्म है अथवा गणधर रचित आगम को सूत्र कहते हैं। प्रत्येक बुद्ध ऋषियों के द्वारा कहे गए आगम को भी सूत्र कहते हैं अथवा श्रुत केवली व अभिन्नदशपूर्वधारी आचार्यों के रचे हुए आगम ग्रन्थ को भी सूत्र कहते हैं। वास्तव में तो सूत्रपना जिनदेव के मुख कमल से निकले हुऐ अर्थवदों में सम्भव है किन्तु गणधर आदि के वचन भी सूत्र के समान होने से सूत्र कहे जाते हैं । 2. जो थोड़े अक्षरों वाला हो, सन्देह से रहित हो, परमार्थ सहित हो, गूढ पदार्थों का निर्णय करने वाला हो, निर्दोष हो, युक्तियुक्त हो और यथार्थ हो उसे सूत्र कहते हैं अथवा जो भले प्रकार से अर्थ को सूचित करे, उस बहुअर्थ गर्भित रचना को सूत्र कहा गया है। 3. परिच्छिति रूप भावश्रुत या ज्ञानसमय को सूत्र कहते हैं। 4. जीव अकर्ता ही है, अभोक्ता ही है, सर्वगत ही है आदि कल्पना युक्त तीन सौ तिरेसठ मिथ्यामतों का जिसमें वर्णन किया गया है वह दृष्टिवाद अंग के पाँच भेदों में से सूत्र नामक एक भेद है।