सासादन सम्यग्दृष्टि
आसादन का अर्थ विराधना है आसादन या विराधना सहित समीचीन दृष्टि जिसके है वह सासादन सम्यग्दृष्टि है सम्यक्त्व रूप शिखर से च्युत, मिथ्यात्वरूप भूमि के सम्मुख और सम्यक्त्व के नाश को प्राप्त हुआ जो जीव है उसे सासादन सम्यग्दृष्टि कहते हैं अथवा उपशम सम्यक्त्व से पतित होकर जीव जब तक मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं हुआ है तब तक उसे सासादन सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। प्रथममोपशम सम्यक्त्व के अन्तर्मुहूर्त काल में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह आवली शेष रहने पर जब अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया व लोभ इन चारों में से किसी एक का उदय होता है तब वह जीव सासादन सम्यग्दृष्टि कहा जाता है। अनन्तानुबंधी कषाय के उदय से उत्पन्न हुआ विपरीताभिनिवेश दूसरे गुणस्थान में पाया जाता है इसलिए द्वितीय गुणस्थानवर्ती जीव मिथ्यादृष्टि तो है किन्तु मिथ्यात्वकर्म के उदय से उत्पन्न हुआ विपरीताभिनिवेश वहाँ नहीं पाया जाता है इसलिए उसे मिथ्यादृष्टि नहीं कहते, केवल सासादन सम्यग्दृष्टि कहते हैं। विपरीताभिनिवेशों से दूषित होने पर भी द्वितीय गुणस्थानवर्ती जीव पहले सम्यग्दृष्टि था ( अर्थात् प्रथमोपशम सम्यकत्व से गिरकर ही सासादन होने का नियम है) इसलिए भूतपूर्व न्याय की अपेक्षा उसके सम्यग्दृष्टि संज्ञा बन जाती है। मात्र सासादन सम्यक्त्व नामक द्वितीय गुणस्थान को मात्र उपशम सम्यग्दृष्टि ही प्राप्त होते हैं और सासादन सम्यक्त्व का काल बीतने पर वह जीव नियम से मिथ्यादृष्टि हो जाता है।