सादृश्यास्तित्त्व
धर्म का वास्तव में उपदेश करते हुए जिनवर वृषभ ने इस विश्व में विविध लक्षण वाले (भिन्न-भिन्न स्वरूपास्तित्त्व ) वाले सर्व द्रव्यों का सत् ऐसा सर्वगत एक लक्षण कहा है। सर्व पदार्थ समूह में व्याप्त होने वाली सादृश अस्तित्त्व को सूचित करने वाली महासत्ता कही जा चुकी है। यद्यपि सर्व द्रव्य स्वरूपास्ति रूप से लक्षित होते हैं फिर भी सर्व द्रव्यों का विचित्रता के विस्तार को अस्त करता हुआ सर्व द्रव्यों में प्रवत्त होकर रहने वाला और प्रत्येक द्रव्य की बंधी हुई सीमा की अवगणना करता हुआ ‘सत्’ ऐसा जो सर्वगत बंधी हुई सीमा की अवगणना करता हुआ सत ऐसा जो सर्वगत सामान्य लक्षणभूत सादृश अस्तित्त्व है, वह वास्तव में एक ही जानना चाहिए।