षट् खंडागम
इसकी उत्पत्ति मूल द्वादशांग श्रुतस्कन्ध से हुई है इसके छह खंड है- जीवट्ठाण, खुद्दाबन्ध, बन्ध स्वामित्व विचय, वेदना खण्ड, वर्णना खंड एवं महाबंध। मूल ग्रन्थ के पाँच खण्ड प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इनमें पहले खण्ड के सूत्र पुष्पदन्त आचार्य ई. सन् (106–136) के बनाये हुए हैं। उनके समाधिस्थ हो जाने के कारण शेष चार खण्डों के पूरे सूत्र आचार्य भूतबलि द्वारा बनाये गये हैं। छठा खण्ड भी सविस्तार रूप से आचार्य भूतबलि द्वारा बनाया गया है, इसके पाँच खण्डों पर अनेको टीकाएँ उपलब्ध है और छठे खण्ड पर वीरसेन स्वामी ने संक्षिप्त व्याख्या लिखी है सर्वप्रथम टीका आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ( ई० 127 – 179) द्वारा इसके प्रथम तीन खण्डों पर रची गई थी। उस टीका का नाम परिकर्म रखा गया जो आज अनुपलब्ध है। दूसरी टीका आचार्य समन्तभन्द्र स्वामी ( ई० शताब्दी 2 ) द्वारा इसके प्राकृत पाँच खण्डों पर रची गई यह भी अप्राप्त है। वर्तमान में आचार्य वीरसेन स्वामी ( ई० 770-827 ) के द्वारा रची गई टीका उपलब्ध है।