शल्य
शल्य का अर्थ है बाधा या पीड़ा देने वाली वस्तु । जब शरीर में काँटा आदि चुभ जाता है तो वह शल्य कहलाता है। जिस प्रकार काँटा आदि शल्य प्राणियों को बाधा डालने वाली होती है उसी प्रकार शरीर और मन सम्बन्धी बाधा या पीड़ा का कारण होने से कर्मोदय जनित विकार को भी शल्य कहते हैं। शल्य तीन प्रकार की है- मायाशल्य, मिथ्याशल्य और निदानशल्य । इन तीनों की जिनसे उत्पत्ति होती है ऐसे कारणभूत कर्म को द्रव्य शल्य कहते हैं। इनके उदय से जीव के माया, मिथ्या व निदान रूप परिणाम होते हैं वे भाव शल्य हैं। जीव का बाहर से बगुलों जैसे वेष को धारण कर लोक को प्रसन्न करना, माया शल्य कहलाती है। अपना निरंजन निर्दोष परमात्मा ही उपादेय है ऐसी रूचि रूप सम्यकत्व से विपरीत मिथ्या शल्य कहलाती है। देखे सुने और अनुभव में आए हुए भौतिक सुखों में निरन्तर चित्त’ को लगाए रखना वह निदान शल्य है ।