शक्तितस्तप
अपनी शक्ति को न छिपाकर मोक्षमार्ग के अनुकूल कायक्लेश आदि तप करना शक्तितस्तप भावना है। यह शरीर दुख का कारण है अशुचि है भोगों से इसकी तृप्ति नहीं होती परन्तु शील व्रत आदि गुणों के संचय में यह आत्मा की सहायता करता है ऐसा विचार कर भोगों से विरक्त होकर आत्म कार्य के लिए शरीर का नौकर की तरह उपयोग कर लेना उचित है । अतः मोक्षमार्ग के अनुरूप कायक्लेश आदि होना यथाशक्ति तप भावना है यह सोलहकरण भावना में से एक भावना है ।