व्यवहार सम्यग्ज्ञान
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द्वादशांग रूप आगम- ज्ञान को व्यवहार – सम्यग्ज्ञान कहते हैं। व्यवहार सम्यग्ज्ञान रूप परमागम के अभ्यास से ही अंतरंग स्वसंवेदन ज्ञान उत्पन्न होता है।
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