विद्या
विद्या का अर्थ है यथावस्थित वस्तु के स्वरूप का अवलोकन करने की शक्ति । अथवा कल्याण रूप मंत्रों से परिष्कृत और लोगों का हित करने वाली भी विद्याएँ कहीं गई हैं। जातिविद्या, कुलविद्या और तपविद्या के भेद से विद्याएँ तीन प्रकार की हैं। इन विद्याओं में स्वकीय मातृपक्ष से प्राप्त हुई विद्याएँ जाति विद्याएँ कहलाती है और पितृपक्ष से प्राप्त हुई कुल विद्याएँ कहलाती हैं । षष्ठ अष्टम आदि उपवासों अर्थात् बेला, तेला आदि के करने से सिद्ध की गई विद्याएँ तपविद्याएँ हैं। विद्याधरों के तीनों प्रकार की विद्या होती हैं। तपविद्या साधुओं के भी होती हैं। विद्यानुवाद पूर्व में अंगुष्ठ, प्रसेन आदि 700 लघु विद्याएँ और महारोहिणी आदि 500 महाविद्याएँ सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त अन्तरिक्ष भौम, अंग, स्वर, स्वप्न, लक्षण, व्यंजन व छिन्न (चिन्ह) में आठ महानिमित्त ज्ञान रूप विद्याएँ भी हैं।