विज्ञानवाद
(मिथ्या विज्ञानवाद ) ज्ञान वादियों का मत तो ऐसा है कि एक मात्रज्ञा से ही इष्ट सिद्धि होती है। इससे अन्य जो कुछ है, सब शास्त्र का विस्तार मात्र है। इस कारण मुक्ति का बीजभूत विज्ञान ही है। (सम्यक् विज्ञानवाद) ज्ञानहीन पुरुष की क्रिया जिसकी क्रिया फलदायक नहीं होती । जिसकी दृष्टि नष्ट हो गई है, वह अंधा पुरुष चलते-चलते जिस प्रकार वृक्ष की छाया को प्राप्त होता है। उसी प्रकार क्या उसके फल को भी पा सकता है। पंगु में तो वृक्ष के फल का देख लेना प्रयोजन को नही साधता । अंधे में फल जानकर तोड़ने रूप क्रिया प्रयोजन नहीं साधती। श्रद्धान रहित के ज्ञान और क्रिया दोनों ही प्रयोजन साधक नहीं है। इस प्रकार ज्ञान क्रिया श्रद्धा तीनों एकत्र होकर ही वांछित अर्थ की साधक होती है। क्रिया रहित तो ज्ञान नष्ट है और अज्ञानी की क्रिया नष्ट होती है। दौड़ते-दौड़ते अंधा नष्ट हो गया और देखता – देखता पंगु नष्ट हो गया । ज्ञान ही सर्व प्रधान है, वह अनुष्ठान व क्रिया का स्थान है। आत्मा द्रव्य नय की अपेक्षा विवेक की प्रधानता से सिद्ध होता है।