वध परीषह जय
तीक्ष्ण अस्त्र आदि के द्वारा मारपीट या घात किए जाने पर उसे समतापूर्वक सहन करना वध परीषह जय है तीक्ष्ण तलवार, मूसल व मुद्गर आदि के द्वारा ताड़न या पीड़न से जिनका शरीर तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है तथापि मारने वालों पर जो लेशमात्र भी मन में बुरा विचार नहीं लाते, यह मेरे पूर्वकृत बुरे कर्म का फल है ये बेचारे क्या कर सकते हैं यह शरीर जल के बुलबुले के समान नश्वर है दुख के कारण मूल शरीर को ही ये बाधा पहुँचा रहे हैं मेरे सम्यग्दर्शन ज्ञान और चरित्र को कोई नष्ट नहीं कर सकता इस प्रकार जो विचार करते हैं और जो वसूली से छीलने व चन्दन से लेप करने में समदर्शी हैं ऐसे मुनि के वध परीषह जय होता है। –