लोकोत्तरप्रमाण
प्रमाण दो प्रकार का है- लौकिक और लोकोत्तर । लोकोत्तर प्रमाण में साकार और भावप्रमाण में अनाकार के भेद से दो का प्रकार है। मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय तथा केवलज्ञान के भेद से भाव प्रमाण पाँच प्रकार का है। ये ही लोकोत्तर प्रमाण है। भाव प्रमाण अर्थात् ज्ञान दर्शन उपयोग, जघन्य सूक्ष्म निगोदिया जीव के उत्कृष्ट केवली भगवान के और मध्यम अन्य के होता है।