रूपस्थ ध्यान
आकाश और स्फटिक मणि के समान स्वच्छ एवं निर्मल शरीर वाले मनुष्यों व देवों के मुकुटों में लगी हुई मणियों की किरणों के समूह से शोभायमान है चरणकमल जिनके ऐसे श्रेष्ठ आठ प्रातिहार्यो से युक्त, समवसरण में विराजमान अनन्त चतुष्टय से समन्वित अरहन्त भगवान का जो ध्यान किया जाता है वह रूपस्थ ध्यान है अथवा उपर्युक्त सर्वशोभा से शोभायमान किन्तु समवसरण आदि से रहित और क्षीरसागर के मध्य में स्थित अथवा उत्तम क्षीरसागर के समान, धवल वर्ण के कमल की कर्णिका के मध्य में स्थित क्षीरसागर के जल की धाराओं के अभिषेक से धवल हो रहा है सर्वांग जिनका ऐसे अरिहन्त परमेष्ठी का जो ध्यान किया जाता है उसे रूपस्थ स्थान कहते हैं ।