रुचि
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तत्त्वार्थ के विषय में तन्मयपना रुचि कहलाती है दृष्टि, श्रद्धा, रुचि और प्रत्यय ये एकार्थवाची हैं। रुचि या श्रद्धान या निश्चय अथवा जो जिनेन्द्र ने कहा वही है। वात, पित्त और कफ की विषमता से उत्पन्न होने वाली शरीर सम्बन्धी पीड़ा को रोग (रुजा) कहते हैं।
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