योग्यता
प्रतिनियत अर्थ की व्यवस्स्था करने वाली उस उस आवरण कर्म के क्षयोपशम रूप अर्थ ग्रहण की शक्ति योग्यता कहलाती है कहा भी है कि क्षयोपशम लक्षण वाली योग्यता ही वह शक्ति है जो कि ज्ञान के प्रतिनियत अर्थ की व्यवस्था करने में प्रधान कारण है। कार्यकारण भाव के प्रकरण में योग्यता का अर्थ कारण की कार्य को पैदा करने की शक्ति आदि कार्य की कारण से उत्पन्न होने की शक्ति ही है जैसे जौ के बीज की जौ के अंकुर पैदा करने में शक्ति है धान का बीज जौ का अंकुर नहीं उत्पन्न कर सकता है यही योग्यता कही जाती है यह शक्तियों का प्रतिनियम उन-उन पदार्थों के स्वभाव से हो जाता है क्योंकि सर्वज्ञ भगवान के सिवाय शक्तियों को प्रत्यक्ष जाना नहीं जा सकता।