भव्य
जिसके सम्यग्दर्शन आदि भाव प्रकट होने की योग्यता है वह भव्य कहलाता है जो भव्य जीव है उनमें कोई संख्यात कोई असंख्यात व कोई अनन्तकाल सिद्ध होंगे और कुछ ऐसे हैं जो अनन्तकाल में ही सिद्ध नहीं होंगे। आसन्न भव्य, दूर भव्य और अभव्य सम भव्य | जो थोड़े समय में अर्थात् दो-तीन भव में मुक्त होंगे, वे आसन्न भव्य हैं, जो बहुत काल में मुक्त होंगे वे दूर भव्य हैं मुक्त होने की योग्यता होने पर भी जो मुक्त नहीं होंगे वे दूरान्दूर भव्य या अभव्यसम भव्य हैं। भव्यत्व ओर अभव्यत्व का विभाजन सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चरित्र की शक्ति के सद्भाव और असद्भाव की अपेक्षा नहीं है वह तो सम्यग्दर्शन आदि को शक्ति के प्रकट होने की योग्यता और अयोग्यता की अपेक्षा है जैसे जिसमें स्वर्ण पर्याय के प्रगट होने की योग्यता है वह स्वर्ण पाषाण कहा जाता है इसी प्रकार सम्यग्दर्शन आदि पर्यायों की अभिव्यक्ति की योग्यता वाला भव्य तथा अन्य अभव्य है स्वर्णपाषाण में स्वर्ण रहते हुए भी उसका पृथक किया जाना जैसे निश्चित नहीं है उसी प्रकार सिद्धत्व की योग्यता रखते हुए कितने ही भव्य जीवों का मोक्ष को प्राप्त करना निश्चित नहीं है ।