पूरक
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द्वादशान्त कहिए तालुवे के छिद्र सें अथवा द्वादशां अंगुल पर्यंत से खैंच कर पवन को अपनी इच्छानुसार अपने शरीर में पूरण करे, उसे वायु विज्ञानी पंडितों ने पूरक पवन कहा है।
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