परिकर्म
जिसमें गणित विषयक करणसूत्र उपलब्ध होते हैं वह परिकर्म कहलाता है। यह दृष्टिप्रवाद अंग का प्रथम भेद है इसमें गणित विषयक संकलन व्यकलन, गुणाकार, भागकार, वर्ग, वर्गमूल, घन और घनमूल का वर्णन किया जाता है। परिकर्म के पाँच भेद हैं–चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीप – सागर प्रज्ञप्ति और व्याख्या प्रज्ञप्ति |2. आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी द्वारा षट्खण्डागम के प्रथम तीन खण्डों पर प्राकृत भाषा में लिखी गई टीका का नाम भी परिकर्म है।