परतंत्रवाद
आत्मा को यह सुख-दुःख स्वयं भोगने नहीं होते, अपितु काल, स्वभाव, नियति, यदृच्छा, पृथ्वी आदि चार भूत, योनिस्थान, पुरुष व चित्त इन नौ बातों के संयोग से होता है, क्योंकि आत्मा दुःख-सुख भोगने में स्वतंत्र नहीं है। आत्मद्रव्य अस्वभावनय से संस्कार को सार्थक करने वाला है । अर्थात् आत्मा को अस्वभावनय से संस्कार उपयोगी है। जिसकी (स्वभाव से नोक नहीं होती, किन्तु संस्कार करके) लुहार के द्वारा नोक निकाली गई हो, ऐसे पैने वाण की भांति । आत्मद्रव्य ईश्वरनय से परतन्त्रता भोगने वाला है। धाय की दुकान पर पिलाये जाने वाले राहगीर के बालक की भांति ।