निर्यापक
सल्लेखना धारण कराने वाले आचार्य को निर्यापक या निर्यापकाचार्य कहते हैं। योग्य-अयोग्य आहार को जानने वाले प्रायश्चित – ग्रंथ के रहस्य को जानने वाले, आगम के ज्ञाता और स्व-पर के उपकार में तत्पर आचार्य ही निर्यापक होने के योग्य हैं। एक क्षपक की सल्लेखना के लिए अधिकतम अड़तालीस निर्यापक होते हैं और कम से कम दो निर्यापक भी सल्लेखना के कार्य को संभाल सकते हैं। जिनागम एक निर्यापक का किसी भी काल में उल्लेख नहीं है। यदि एक ही निर्यापक होगा तो सल्लेखना का महान कार्य निर्विघ्न संपन्न नहीं हो सकता।