नियतिवाद
जो जब, जिसके द्वारा, जिस प्रकार से, जिस नियम से होना होता है वह तब ही, तिसके द्वारा, तिस प्रकार से होता है- ऐसा मानना नियतिवाद नाम का एकान्त मिथ्यात्व है। जिस जीव की जिस देश में, जिस काल में और जिस विधान से जो जन्म अथवा मरण जिनदेव ने नियम रूप से जाना है, उसी जीव के उसी देश में, उसी काल में, उसी विधान से वह अवश्य होता है। उसे इन्द्र अथवा जिनेन्द्र कौन टाल सकने में समर्थ है। इस प्रकार से जो निश्चय नय से सब द्रव्यों को और सब पर्यायों को जानता है वह सम्यकदृष्टि है और जो उनके अस्तित्व में शंका करता है वह मिथ्यादृष्टि है। जिस काल विषय जो कार्य भया सो ही होनहार (भवितव्य) है, जो होने योग्य हो उसे भवितव्य कहते हैं और उसका भाव भवितव्यता है। मनुष्य प्रतिदिन अपने कल्याण का विचार करते हैं किन्तु आई हुई भवितव्यता वह ही करती है। जो उसको रूचता है जो भवितव्य है वही होता है राम से इतना कहकर मुनिराज ने गृद्ध से कहा कि हे द्विज अब भयभीत मत होओ, रो मत, जो भवितव्य है, अर्थात् जो बात जैसी होने वाली है उसे अन्यथा कौन कर सकता है। नोट नियत- अनियत नय का संबंध नियतवृत्ति से (नियत सिद्धांत से नहीं)।