निद्रा
मद, खेद व परिश्रम-जन्य थकावट को दूर करने के लिए शयन या विश्राम करना निद्रा है। निद्रा कर्म के उदय में जीव अल्प-काल सोता है और उठाए जाने पर जल्दी उठ जाता है । स्वाध्याय व ध्यान से युक्त साधु सूत्रार्थ का चिन्तन करते हुए रात्रि को निद्रा के वश नहीं होते यदि सोते है तो पहला और पिछला पहर छोड़कर कुछ निद्रा ले लेते हैं। मन को शुद्ध चिद्रूप में रोकना योग कहलाता है। रात्रि को मैं इस वसतिका में ही रहूँगा, ऐसी प्रतिज्ञा को योग निद्रा कहते हैं । अर्धरात्रि से दो घड़ी काल स्वाध्याय के योग्य माना गया है। इस अल्पकाल में साधुजन शरीर श्रम को दूर करने के लिए जो निद्रा लेते हैं, उसे योग निद्रा समझना चाहिए ।