निदान
‘मुझे भविष्य में इस वस्तु की प्राप्ति हो ऐसा संकल्प करना निदान कहलाता है। यह तीन प्रकार का है- प्रशस्त, अप्रशस्त और भोगकृत। संयम की साधना के लिए परलोक में उत्तम शरीर, दृढ़ परिणाम और योग्य सामग्री प्राप्त हो ऐसी भावना रखना प्रशस्त निदान है। अभिमानवश उत्तम कुल, वंश या उत्तम पदवी की कामना करना अप्रशस्त निदान है अथवा क्रोधित होकर मरण के समय शत्रु के वध की इच्छा करना अप्रशस्त निदान है। परलोक में भोग-विलास की उत्तम सामग्री मिले, ऐसी आकांक्षा करना भोगकृत निदान है।