निःश्रेयस
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जन्म जरा मरण रोग व शोक के दुःखों से और सप्त भयों से रहित अविनाशी तथा कल्याणमय शुद्ध सुख निःश्रेयस कहा जाता है। तीर्थंकर ( अर्हत ) और कल्पातीत अर्थात् सिद्ध, इनके अतीन्द्रिय, अतिशय रूप, आत्मोपन्न, अनुपम और श्रेष्ठ सुख को निःश्रेयस सुख कहते हैं।
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