नारायण
अपने पूर्वभव में जो जीव रत्नत्रय की आराधना करके विशिष्ट पुण्य का संचय करता है लेकिन लोभवश आगामी भोगों की आकांक्षा रूप निदान करके स्वर्ग में उत्पन्न होता है और वहाँ से च्युत होकर मनुष्यों में तीन खण्ड राज्य के अधिपति के रूप में उत्पन्न होता है। यह तीन खण्ड राज्य का स्वामी ही नारायण कहलाता है। नारायण के चक्र, गदा, खड्ग, शक्ति, धनुष, शंख और महामणि – ये सात रत्न और अपार वैभव होता है। एक उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी काल में नौ नारायण होते हैं। नारायण बलभद्र के छोटे भाई होते हैं। हिंसा का समर्थन करने से नरक में जाते हैं लेकिन भव्य होने के कारण शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। नव नारायण के नाम इस प्रकार हैं- त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ स्वयंभू (धनमित्र), पुरुषोत्तम (सागरदत्त), पुरुषसिंह (विकट), पुरुषपुंडरीक (प्रियमित्र), दत्त (मानस चेष्टव), लक्ष्मण, कृष्ण