धर्मानुप्रेक्षा
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जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गए वीतराग धर्म के बिना यह जीव अनादि काल से दुख का अनुभव करते हुए संसार में भ्रमण कर रहा है। धर्म को धारण करने वाले जीव को उत्तम सुख की प्राप्ति होना निश्चित है। इस प्रकार धर्म-भ बार-बार चिन्तन करना धर्मानुप्रेक्षा है। -भावना का
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