देव
वीतराग, सर्वज्ञ और आगम के ईश (स्वामी) को आप्त या देव कहते हैं। देव शब्द के अनेक अर्थ किए गए हैं जो परमसुख में क्रीड़ा करता है वह देव है या जो कर्मों को जीतने की इच्छा करता है वह देव है अथवा जो करोड़ों सूर्यों से भी अधिक तेज से दैदीप्यमान है वह देव है जैसे अर्हन्त परमेष्ठी । अथवा जो धर्मयुक्त व्यवहार का विधाता है वह देव है अथवा जो लोक अलोक को जानता है वह देव है जैसे सिद्ध परमेष्ठी । अथवा जो अपने आत्म स्वरूप का साधन करता है वह देव है। जैसे आचार्य उपाध्याय साधु पंच परमेष्ठी, जिनधर्म, जिनवचन, जिन प्रतिमा और जिनालय, ये नवदेवता माने गए हैं। –