जीव कर्म
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जो मिथ्यात्व योग अविरति और अज्ञान अजीव है, सो तो पुद्गल कर्म है, और जो मिथ्यात्व, अविरति और अज्ञान जीव है, वह उपयोग है, पुद्गल याके द्रव्य भाये हैं अर्थात् उन कार्मण स्कन्धों की अवस्था अजीव कर्म है और जीव के द्वारा भाये गये अर्थात् उपयोग स्वरूप रागद्वेषादिक जीव कर्म है।
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