चन्द्रप्रभ
अष्टम तीर्थंकर। इनका जन्म इक्ष्वाकु वंशी राजा महासेन और रानी लक्ष्मणा के यहाँ हुआ। इनकी आयु दस लाख वर्ष पूर्व और शरीर की ऊँचाई एक सौ पचास धनुष थी। शरीर की आभा श्वेत थी। एक दिन शरीर की नश्वरता का चिंतन करते-करते विरक्त होकर गृहत्याग कर दिया और जिनदीक्षा ले ली। तीन माह तक कठिन तपस्या के उपरांत इन्हें केवलज्ञान हुआ। इनके समवसरण में दत्त आदि तेरानवें गणधर, लगभग तीन लाख मुनि, तीन लाख अस्सी हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक व पाँच लाख श्राविकाएँ थीं। इन्होंने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया ।