घाति कर्म
जो जीव के ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य इन अनुजीवी गुणों का घात करते हैं अर्थात् प्रकट नहीं होने देते, उन्हें घाति कर्म कहते हैं। घाति कर्म के चार भेद हैं- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय। ये कर्म क्रम से ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य गुण का घात करते हैं। देशघाति और सर्वघाति ऐसे दो भेद इनमें होते हैं जो जीव के गुणों का एकदेश (आंशिक) घात करें अर्थात् जिनका उदय रहते हुए भी गुण कुछ अंशों में प्रकट करें उन्हें देशघाति कर्म कहते हैं। मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधि ज्ञानावरण, मनःपर्यय ज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, सम्यक्त्व प्रकृति, संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया, संज्वलन लाभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री वेद, पुरूष वेद, नपुंसक वेद, दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय ये छब्बीस कर्म प्रकृतियाँ देशघाति हैं। जो आत्म गुण को बिल्कुल भी प्रकट न होने दे उसे सर्वघाति कहते हैं । केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी, क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ और प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया लाभ ये इक्कीस कर्म प्रकृतियाँ सर्वघाति हैं। इनमें सम्यग्मिथ्यात्व कर्म का बंध नहीं होता, मात्र उदय और सत्व होता है इनका कार्य अन्य सर्वघाति की अपेक्षा भिन्न प्रकार का है।