क्षीण कषाय
जिनकी कषाय क्षीण हो गयी है उन्हें क्षीणकषाय कहते हैं अथवा समस्त मोहनीय कर्म के क्षय हो जाने से जिनका चित्त स्फटिक के निर्मल भाजन में रखे जल के समान स्वच्छ है ऐसे निर्ग्रन्थ साधु को क्षीणकषाय संयत कहते हैं। क्षीणकषाय गुणस्थान में जीवों का शरीर निगोद राशि से शून्य हो जाता है। क्षीण कषाय के प्रथम समय से लेकर बादर निगोद जीव तब तक उत्पन्न होते हैं जब तक क्षीण कषाय के काल में उनका जघन्य आयु का काल शेष रहता है इसके बाद उत्पन्न नहीं होते।