क्षयोपशम
सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय उन्हीं का सदवस्थारूप उपशम और देशघाती स्पर्धकों के उदय से उत्पन्न अवस्था का नाम क्षयोपशम है अथवा कर्मों के क्षय और उपशम से उत्पन्न हुआ गुण क्षायोपशिक कहलाता है। जैसे- कोदों को धोने से कुछ कोदों की मादकता नष्ट हो जाती है कुछ बनी रहती है, इसी तरह परिणामों की निर्मलता से कर्मों के एकदेश का क्षय और एकदेश का उपशम होना क्षयोपशम कहलाता है । यद्यपि इस अवस्था में कुछ कर्मों का उदय भी विद्यमान रहता है परन्तु उसकी शक्ति अत्यन्त क्षीण हो जाने के कारण वह जीव के गुणों को घातने में समर्थ नहीं होता। इसीलिए कर्मों का उदय होते हुए भी जो जीव के गुण का अंश उपलब्ध रहता है उसे क्षयोपशम कहते हैं।