क्रियाऋिद्धि
क्रियाॠिद्धि के अन्तर्गत चारण और आकाशगामी ऋद्धियाँ आती हैं। चरण, चारित, संयम, और पाप क्रियानिरोध इनका एक ही अर्थ है। इनमें जो कुशल अर्थात् निपुण हैं वे चारण ऋिद्धिधारी मुनि कहलाते हैं। जल, जंघा, तन्तु, फल, पुष्प, बीज, आकाश और श्रेणी के भेद से चारण ऋद्धिधारी आठ प्रकार के हैं। जो जल, तन्तु, फल, पुष्प, बीजादि में स्थित जीवों को छूते हुए भी इच्छानुसार जीवों को बाधा न पहुँचाकर भूमि के समान जल आदि में गमन करने में समर्थ हैं, वे जलचारण, तन्तुचारण, फल और पुष्पचारण या बीजादिचारणऋद्धि धारी कहे जाते हैं। पर्यंकासन में बैठकर अथवा अन्य किसी आसन में बैठकर या कायोत्सर्ग मुद्रा में पैरों को उठाकर, रखकर या बिना पैर उठाये रखे आकाश में गमन करने में जो कुशल होते हैं, वे आकाशगामी ऋद्धि के धारक हैं।