कुमतिज्ञान
मिथ्यादर्शन के साथ होने वाले मतिज्ञान को कुमतिज्ञान कहते हैं जिस प्रकार कड़वी तूंबडी में रखा दूध कड़वा हो जाता है, उसी प्रकार मिथ्यादर्शन के निमित्त से ज्ञान मिथ्या हो जाते हैं। जिस प्रकार सम्यग्दृष्टि चक्षु आदि के द्वारा रूपादिक पदार्थों को ग्रहण करता है उसी प्रकार मिथ्यादृष्टि भी मतिज्ञान के द्वारा रूपादिक पदार्थों को ग्रहण करता है लेकिन मोक्षमार्ग में प्रयोजनभूत तत्त्वों के विषय में श्रद्धान न होने कारण विपर्यास, भेदाभेद विपर्यास और स्वरूप विपर्यास को उत्पन्न करता रहता है इसी प्रकार कुश्रुतज्ञान और कुअवधिज्ञान के बारे में जानना चाहिए। परोपदेश के बिना जो मंत्र, यंत्र, कंट, पंजर तथा बन्द आदि के विषय मे बुद्धि परिवर्तित होती है, उसे ज्ञानीजन मिथ्याज्ञान कहते हैं। मिथ्याज्ञान के उदय के साथ अभिनिबोधक ज्ञान कुमतिज्ञान है।